दमन और दीव केंद्र शासित दो जिले हैं, जो भारत के पश्चिमी तट पर बसें हैं. दमन गुजरात राज्य के दक्षिणी भाग के पास मुख्य भूमि पर है. वेस्टर्न रेलवे का वापी निकटतम रेलवे स्टेशन (13 किलोमीटर) है जो मुंबई और सूरत के बीच पश्चिमी रेलवे पर है. वापी मुंबई सेंट्रल से 167 किलोमीटर और सूरत से 95 किलोमीटर दूर है.
दमन का इतिहास प्राचीन काल से शुरू होता है, जब यह मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था. इसके बाद इस पर हिंदू राजाओं और फिर गुजरात के सुल्तानों का शासन रहा. 1559 में पुर्तगालियों ने इस पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया और 1961 तक उनका शासन रहा.
इसके बाद इसे भारतीय संघ में शामिल किया गया. गोवा के राज्य बनने के बाद दमन और दीव एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बने, और सन 2020 में इन्हें दादरा और नगर हवेली के साथ मिलाकर एक ही केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया.
मौर्य काल के बाद, इस पर विभिन्न हिंदू राजाओं का शासन रहा, जो 13वीं शताब्दी में समाप्त हो गया. इसके बाद, मुस्लिम सुल्तानों, विशेषकर गुजरात के सुल्तानों का शासन स्थापित हुआ.
पुर्तगालियों का आगमन :
1523 में पुर्तगालियों ने पहली बार दमन में कदम रखा और धीरे-धीरे इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर दिया. साल 1559 तक पुर्तगालियों ने पूरे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया.
मोटी दमन किले का निर्माण :
पुर्तगाली शासन के दौरान ही 1559 में मोटी दमन किले का निर्माण शुरू हुआ और 1581 में पूरा हुआ.
स्वतंत्रता के बाद भारतीय संघ में इसे जीतकर इसमें शामिल कर दिया. 19 दिसंबर, 1961 को, भारत ने गोवा, दमन और दीव को अपने अधिकार में ले लिया और वे केंद्र शासित प्रदेश गोवा, दमन और दीव का हिस्सा बन गए.
30 मई, 1987 को गोवा को राज्य का दर्जा मिलने के बाद, दमन और दीव एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बने.
विलीनीकरण: 20 जनवरी, 2020 को दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव का विलीनीकरण करके एक नया केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया.
“दीव” गुजरात राज्य में जूनागढ़ जिले के ऊना के पास एक द्वीप है. निकटतम रेलवे स्टेशन देलवाड़ा है जो दीव से 9 किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन महत्वपूर्ण ट्रेनें वेरावल से जुड़ी हुई हैं जो दीव से 90 किलोमीटर दूर है. दीव जिले का एक हिस्सा मुख्य भूमि पर है जिसका नाम घोघला है
ता : 19 दिसंबर 1961 को चार शताब्दियों से अधिक के पुर्तगाली शासन से मुक्ति के बाद दमन और दीव भारत सरकार के अधीन गोवा, दमन और दीव के केंद्र शासित प्रदेश का एक हिस्सा बन गए. गोवा के विभाजन के बाद, जिसने राज्य का दर्जा प्राप्त किया, दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश 30 मई 1987 को अस्तित्व में आया.
एक औपनिवेशिक शहर के रूप में, दमन एक ऐसा संगम स्थल रहा है जहाँ विभिन्न जातियां और संस्कृतियां देखनेको मिलती हैं. यहाँ की अधिकांश आबादी हिंदू मछुआरा जनजातियों और कस्बों में ईसाई, मुस्लिम, खोजा और पारसी लोगों की है. यहाँ की मुख्य भाषाएँ गुजराती और पुर्तगाली हैं. हिंदी और अंग्रेजी व्यावसायिक भाषा बनी हुई हैं.
पुर्तगाली शासन का अंत :
पुर्तगाली भारत (इंडिया पोर्टुगुसा या एस्टाडो दा इंडिया) भारत में पुर्तगाल की औपनिवेशिक होल्डिंग्स का नाम था. इस क्षेत्र में पश्चिमी तट पर गोवा, दमन और दीव के एन्क्लेव, दादरा और नगर हवेली और अंजेदिवा द्वीप समूह का क्षेत्र शामिल था.
जब भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ, पुर्तगाल ने अपनी कॉलोनी बनाए रखी. सन 1954 में, भारतीय क्रांतिकारियों ने दादरा और नगर हवेली पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया और पुर्तगाली सैनिकों को क्षेत्र की यात्रा करने से रोक दिया. दमन को एक पुर्तगाली क्षेत्र माना जाता था और दाभेल को भारत का क्षेत्र माना जाता था.
दमन पूरी तरह से पुर्तगाली सत्ता के अधीन था. भारत से किसी भी आयात की अनुमति नहीं थी. 17 जुलाई 1954 को, पुर्तगाली सरकार ने भारत के अन्य राज्यों के साथ सीमा बंद कर दी. चूँकि दादरा नगर हवेली भारत का हिस्सा था, इसलिए दादरा नगर हवेली की यात्रा की अनुमति थी, लेकिन दमन वापस नहीं जा सकते थे.
अगस्त 1954 तक, सीमा पर रिश्तेदार एक-दूसरे से मिलते रहे, फिर अगस्त 1954 में दादरा नगर हवेली पुर्तगाली शासन के अधीन दमन में शामिल हो गई, लेकिन 2 अगस्त 1954 को एक युद्ध के बाद आज़ाद होकर भारत में शामिल हो गई.
सभी नियमित आपूर्तियाँ विदेशों से, अन्य यूरोपीय क्षेत्रों से आयात की जाती थीं. पुर्तगाली सरकार लोगों की सभी घरेलू ज़रूरतों की पूर्ति करती थी ताकि उन्हें किसी भी चीज़ की कमी न हो. लेकिन उन्हें दमन से आने-जाने की अनुमति नहीं थी. प्रत्येक नागरिक को पहचान पत्र ‘बिल्हेतेदे आइडेंटिडेड’ दिए जाते थे. सीमा पार करने के लिए विशेष पारगमन परमिट (डॉक्यूमेंटो पैरा वियाजम) की आवश्यकता होती थी, जिस पर यात्रा के दौरान आधिकारिक मुहर लगाई जाती थी.
1960 की जनगणना के अनुसार दमन में मुसलमानों का प्रतिशत 9% था ( इसमें मुसलमानों के सभी संप्रदाय शामिल थे ). 1961 में, बंदी समाप्त हो गई. दमन के अंतिम पुर्तगाली गवर्नर, ब्रिगेडियर मैनुअल एंटोनियो डी कोस्टा पिंटो, तीन बत्ती के पास, भारतीय सेना द्वारा, भारतीय नौसेना और वायुसेना की सहायता से, ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान घायल हो गए, जिसके परिणाम स्वरूप 19 दिसंबर 1961 को पुर्तगाली छावनी ने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत में यूरोपीय प्रभुत्व का अध्याय समाप्त हो गया.
