शांताराम राजाराम वांकुद्रे को बापू के नाम से भी जाना जाता है. वह एक भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता, पट कथा लेखक और अभिनेता थे जो हिंदी और मराठी फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने 20 वर्ष की उम्र में 12 वर्षीय विमलाबाई से विवाह किया था.
उनके चार बच्चे थे. बेटा प्रभात कुमार ( जिनके नाम पर शांताराम ने अपनी फिल्म कंपनी का नाम रखा ) और उनकी बेटियां सरोज, मधुरा और चारुशीला थी. सबसे बड़ी बेटी सरोज का विवाह सोली इंजीनियर, एक पारसी से हुआ, और वे कोल्हापुर के पास पन्हाला में वैली व्यू ग्रैंड रिज़ॉर्ट चलाते हैं , जो शांताराम के फार्महाउस पर बना है, जो सरोज को विरासत में मिला था.
वी. शांताराम की दूसरी बेटी मधुरा, पंडित जसराज की पत्नी और संगीत निर्देशक शारंग देव पंडित और टीवी व्यक्तित्व दुर्गा जसराज की मां हैं. वही शांताराम की तीसरी बेटी, चारुशीला, पूर्व फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ रे की मां हैं. सन 1941 में, शांताराम ने अभिनेत्री जयश्री (जन्म कामुलकर) से विवाह किया, जिनके साथ उन्होंने शकुंतला (1942) सहित कई फ़िल्मों में काम किया था. जयश्री से उनके तीन बच्चे हुए, एक बेटा, मराठी फ़िल्म निर्देशक और निर्माता किरण शांताराम और दो बेटियाँ, अभिनेत्री राजश्री और तेजश्री. 1956 में दोनों का तलाक हो गया.
हिंदुओं के लिए बहुविवाह निषेध कानून में बदलाव से ठीक पहले ही वी. शांताराम ने अपनी एक और प्रमुख नायिका, अभिनेत्री संध्या से विवाह किया, जिन्होंने उनकी फ़िल्मों अमर भूपाली और परछाइयाँ में भी अभिनय किया था और बाद में उनकी कई आगामी फ़िल्मों, जैसे “दो आँखें बारह हाथ” , “झनक झनक पायल बाजे” , “नवरंग”, “जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली”और “सेहरा” में भी काम किया.
उनकी कोई संतान नहीं थी, लेकिन संध्या का विमलाबाई और उनके बच्चों के साथ गहरा रिश्ता था.
वी. शांताराम ने प्रभात फ़िल्म के लिए तीन बेहद शानदार फ़िल्में बनाई. उन्होंने साल 1937 में करुकू ( हिन्दी में दुनिया ना माने), साल 1939 में मानुष (हिन्दी में आदमी) और साल 1941 में शेजारी (हिन्दीमें पड़ोसी) बनाई. उन्होंने बाद में प्रभात फ़िल्म को छोड़कर राज कमल कला मंदिर का निर्माण किया.
इसके लिए उन्होंने ‘शकुंतला’ फ़िल्म बनाई. इसका 1947 में कनाडा की राष्ट्रीय प्रदर्शनीमें प्रदर्शन किया गया. शांताराम की बेहतरीन फ़िल्मों में से एक है डॉ.कोटनिस की अमर कहानी. यह एक देशभक्त डाक्टर की सच्ची कहानी पर आधारित है जो सद्भावना मिशन पर चीन गए चिकित्सकों के एक दल का सदस्य था.
दो आँखे बारह हाथ शांताराम की सर्वाधिक चर्चित फ़िल्म है. जो 1957 में प्रदर्शित हुई थी. यह एक साहसिक जेलर की कहानी है जो छह क़ैदियों को सुधारता है. इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था. इसे बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर और सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म के लिए सैमुअल गोल्डविन पुरस्कार से नवाजा गया. इस फ़िल्म का गीत ऐ मालिक तेरे बंदे हम… आज भी लोगों को याद है.
झनक झनक पायल बाजे और नवरंग उनकी बेहद कामयाब फ़िल्में रहीं. दर्शकों ने इन फ़िल्मों के गीत और नृत्य को काफ़ी सराहा और फ़िल्मों को बार- बार देखा. शांताराम की आख़िरी महत्त्वपूर्ण फ़िल्म थी पिंजरा. यह फ़िल्म जोसफ स्टर्नबर्ग की 1930 में प्रदर्शित हुई क्लासिक फ़िल्म ‘द ब्ल्यू एंजेल’ पर आधारित थी. वैसे उनकी आख़िरी फ़िल्म झांझर थी. यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कामयाब नहीं हो सकी और सात दशकों तक चले उनके शानदार फ़िल्मी कैरियर का अंत हो गया.
वी. शांताराम एक चलते-फिरते संस्थान की तरह थे, जिन्होंने फ़िल्म जगत में बहुत सम्मान हासिल किया. फ़िल्म निर्माण की उनकी तकनीक और उनके जैसी दृष्टि आज के निर्देशकों में कम ही नज़र आती है. उन्हें वर्ष 1957 में झनक-झनक पायल बाजे फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था.उनकी फ़िल्म दो आँखेंं बारह हाथ के लिए सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार प्रदान किया गया.
इस फ़िल्म ने बर्लिन फ़िल्म समारोह और गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड में भी झंडे गाड़े. शांताराम को 1985 में भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
50 और 60 के दशक को भी कभी कभी हिंदी सिनेमा का स्वर्ण युग कहा जाता है. यह वो समय था जब भारतीय फिल्म निर्माण में पहले इनोवेटर्स का आगमन हुआ और बॉलीवुड निर्देशकों ने हिंदी सिनेमा की सीमाओं को आगे बढ़ाते हुए नई शैलियों और तकनीकों के साथ प्रयोग किया था.
वी. शांताराम ने अपनी कुछ फिल्मों में खुद भी अभिनय किया, लेकिन ज्यादातर उन्होंने एक दूरदर्शी निर्देशक के रूप में लोकप्रिया पाई. उन्होंने एक फिल्मफेयर, एक गोल्डन ग्लोब, एक राष्ट्रीय पुरस्कार और यहां तक कि बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी दो पुरस्कार जीते.
संध्या और विमलाबाई सालों तक एक ही घर में रहीं. वी. शांताराम का 1990 में 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
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