सिलाई मशीन में सुई – कैची का स्थान.

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सिलाई मशीन ( SEWING MACHINE ) सुई ( NEEDLE ) और कैची ( SCISSORS ) का अब तक का रोचक दिलचस्प इतिहास.

भारत में सिलाई मशीन का एक अनोखा इतिहास हैं. सुई और कैची सिलाई मशीन का एक अति आवश्यक

भाग हैं, जिसके बिना मशीन अधूरा हैं.

भारत में भी उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक मशीन आ गई थी. इसमें दो मुख्य थीं, अमरीका की “सिंगर” तथा इंग्लैंड की “पफ”. स्वतंत्रता के बाद भारत में भी मशीनें बनने लगीं जिनमें उषा प्रमुख है. सिंगर के आधार पर मेरिट भी भारत में ही बनती है.

भारत में सन 1935 में कोलकाता ( पहले कलकत्ता ) के एक कारखाने में “उषा” नाम की पहली सिलाई मशीन बनी. मशीन के सारे पुर्जें भारत में ही बनाए गए थे. अब तो भारत में विविध प्रकार की सिलाई मशीनें बनती हैं. उन्हें विदेशों में भी बेचा जाता है.

” सिलाई ” मशीन का वास्तविक आविष्कार एक निर्धन दर्जी सेंट एंटनी निवासी बार्थलेमी थिमानियर ने किया जिसका पेटेंट ई. सन्‌ 1830 में फ्रांस में हुआ. पहले यह मशीन लकड़ी से बनाई गई. कुछ दिन पश्चात्‌ ही कुछ लोगों ने इस संस्थान को तोड़-फोड़ डाला जहाँ यह मशीन बनती थी और आविष्कारक कठिनाई से जान बचा कर भागा. सन्‌ 1845 में उसने उससे बढ़िया मशीन का दूसरा पेटेंट करा लिया और सन्‌ 1848 में इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमरीका से भी पेटेंट ले लिया. अब मशीन लोहे की हो चुकी थी.

सुई और कैची दोनों का इतिहास काफी लंबा और दिलचस्प है. सुई का इस्तेमाल प्राचीन काल से ही कपड़े सिलने और सजावट के लिए किया जाता रहा है, जबकि कैची का उपयोग विभिन्न सामग्रियों को काटने के लिए किया जाता है.

सुई का इतिहास :

सुई का सबसे पुराना ज्ञात उपयोग लगभग 40,000 साल पहले से है, जब मानव जाति ने हड्डियों और जानवरों की झिल्ली से सुई बनाना शुरू किया था.

1800 के आसपास, बालथासर क्रेम्स नामक एक जर्मन व्यक्ति ने सुई में आंख को नोक के करीब लाने का आविष्कार किया, जिससे सुई का उपयोग करना और भी आसान हो गया.

18वीं शताब्दी में, अमेरिका में युवा महिलाओं को सुई के काम में प्रशिक्षित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता था. आज सुई धातु, प्लास्टिक और अन्य सामग्रियों से बनी होती है, और इसका उपयोग सिलाई, बुनाई और चिकित्सा के क्षेत्र में किया जाता है.

कैची का इतिहास :

प्राचीन काल में, कटर या कैची का उपयोग विभिन्न सामग्रियों को काटने के लिए किया जाता था, जैसे कि पत्थर, हड्डी, और लकड़ी. 19वीं शताब्दी में, सुई-कैची का आविष्कार हुआ, जो एक विशेष प्रकार की कैची है जिसका हम उपयोग कागज, फोम और अन्य कई सामग्रियों को काटने के लिए करते हैं.

आज कल कैची का उपयोग विभिन्न उद्योगों में किया जाता है, जैसे कि निर्माण, कपड़ा और चिकित्सा.

सुई और कैची दोनों मानव इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सुई का उपयोग कपड़े और अन्य सामग्रियों को सिलने और सजाने के लिए किया जाता है, जबकि हम कैची का उपयोग विभिन्न सामग्रियों को काटने के लिए करते है.

कैंची के आविष्कार को लेकर कोई एक किसी विशिष्ट व्यक्ति को श्रेय देना मुश्किल है. कैंचीके शुरुआती रूप मिस्र और मध्य पूर्व में 4000 साल पहले से ही देखे गए थे. हालांकि, आधुनिक कैंची का निर्माण और बड़े पैमाने पर उत्पादन का श्रेय शेफ़ील्ड, इंग्लैंड के रॉबर्ट हिंचलिफ़ को जाता है, जिन्होंने 1761 में कठोर और पॉलिश किए गए कास्ट स्टील से बनी पहली जोड़ी बनाई.

चीन के हांग्जो झांग शियाओक्वान कंपनी ने 1663 से कैंची का निर्माण किया. कैंची का आविष्कार एक लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया थी, जिसमें कई लोगों ने योगदान दिया. हालांकि, आधुनिक कैंची का श्रेय रॉबर्ट हिंचलिफ़ को दिया जाता है.

लियोनार्डो दा विंची का जन्म सन 1452 में इटली में हुआ था. दा विंची एक आविष्कारक, कलाकार, मूर्तिकार, वास्तुकार, आविष्कारक और दूरदर्शी थे. इस व्यक्ति को आश्चर्यजनक कलाकृतियाँ चित्रित करने और अधिक तकनीकी दुनिया की कल्पना करने का श्रेय दिया जाता है.

हालांकि लियोनार्डो दा विंची ने कैंची की घूर्णन क्रिया में सुधार किया था, लेकिन उन्होंने इस उपकरण का आविष्कार नहीं किया था. माना जाता है कि प्राचीन मिस्र और रोम में कैंची का इस्तेमाल किया जाता था. प्राचीन मिस्र में कैंची का इस्तेमाल 1500 ईसा पूर्व से ही किया जाता था. प्राचीन रोम में कैंची आज भी इस्तेमाल की जाने वाली कैंची जैसी ही है. कैंची एक क्रॉस-ब्लेड कैंची थी, जो कांस्य और लोहे से बनी थी और इसका इस्तेमाल 100 ई.पू. से ही किया जाने लगा था.

अंग्रेज रॉबर्ट हिंचक्लिफ़ को आधुनिक कैंची विकसित करने का श्रेय दिया जाता है. ये उपकरण स्टील से बने थे और 1781 तक बड़े पैमाने पर इनका उत्पादन होने लगा था. हालांकि दा विंची ने कैंची का आविष्कार नहीं किया था, लेकिन उन्होंने अनेक आविष्कार किए थे, जिनमें एनीमोमीटर (वायु मापक यंत्र), पहला उड़ने वाला यंत्र और हेलीकॉप्टर तथा घूमने वाला पुल शामिल था.

इस पोस्ट का समापन करने से पहले आज मैं एक कैंची और सुई की कहानी प्रस्तुत करता हूं.

एक दिन स्कूल में छुट्टी के होनेके कारण एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया. वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा. उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं.

फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं. जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ?

पापा ने कहा-बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ?

बेटा बोला, पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ?

इसका जो उत्तर पापा ने दिया उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया.

उत्तर था, ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है.

यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं……..! ( समाप्त )

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