इस आर्टिकल के साथ वायरल की गई तस्वीर 60 साल पुरानी है. उस समय बाहर गांव आने जाने वाली ट्रैन भाप इंजन की हुआ करती थी. जो बॉम्बे सेंटल ( अब मुंबई सेंट्रल ) से चलती थी. यह 1974 में ली गई है. तब सिर्फ दो लाइन थी. दो लाइन के बिच ओवर हेड वायर के लिए क्रॉस आकार के खम्भे रहते थे. जो तस्वीर में स्पस्ट दिखाई दे रहा है.
ट्रैन के इंजिन के पीछे दूर दूर नारियल के पेड़ दिख रहे है, जिसे कोठार कहते थे. भाईंदर गांव की पूर्व का भाग स्पस्ट दिखाई दे रहा है. कोठार से गावदेवी मंदिर और वहासे मांडली तलाव तक का भाग पेड़ोंसे हरा भरा दिखाई दे रहा है.
1974 में यहां पर ग्रामपंचायत की हकुमत थी. उस समय का भाईंदर गांव की कुछ झलक प्रस्तुत कर रहा हूं. भाईंदर पश्चिम में एकमात्र पुलिस स्टेशन था. जिसका काम भाईंदर पूर्व -पश्चिम काशीमीरा से उत्तन तक की सुरक्षा संभालना था, जो आज भी मुख्य पुलिस स्टेशन के पश्चिमी छोर पर विद्यमान है. गांव में भाईंदर गांव के बिच राव तालाव सबसे बड़ा तालाब था, जहाँ गणपति विसर्जन किया जाता था . दूसरा नंबर का तालाब चर्च की पूर्व में था, जहापर मीरा भाईंदर महा नगर पालिका का मुख्य कार्यालय मौजूद है.
भाईंदर गांव की सीमा की बात करें तो पुलिस स्टेशन से फकरी कॉलोनी, वहासे चंदूलाल शेठ की वाडी, क्रॉस गार्डन से कोठार, कोठार से गावदेवी मंदिर होते मांडली तालाव जहाँ पर नगर भवन बना हैँ. तालाब अब छोटा कर दिया हैँ. वहासे बर्फ कंपनी – पुलिस स्टेशन होते हुए भाईंदर सेकेंडरी स्कूल तक फैला हुआ था. गांव में पंचायत की हकुमत वाले तीन तालाब थे. चंदूलाल शेठ की वाड़ी में उनका निजी तालाब था
चंदूलाल शेठ की वाड़ी में हजारों चमगादड़ रेन बसेरा करते थे . जो शाम 6 बजे भोजन की तलाश मे जंगलों में चले जाते थे और सुबह 6 बजे वापस आते थे.
गांव में हनुमान मंदिर, शिव मंदिर, राम मंदिर तीन प्रमुख मंदिर थे. एक चर्च, एक जैन मंदिर था. बावन जीनालय बाद में बना. राव तालाब स्थित बाले शा पीर की एक मजार थी जो आज भी हैँ. हिन्दू, मुस्लिम, जैन और ईसाई आपस में मिलजुलकर रहते थे इसका प्रमाण ये चारो मंदिर हैँ.
पूरा भाईंदर कांग्रेस के रंगों में रंगा था. राजनीति मिठालाल जैन के इर्दगिर्द गुमती थी. पानी समस्या विकट थी. श्री जनार्दन रकवी, डॉ. गुणवंत त्रिवेदी, भारत के विकास का प्रथम चिराग स्व. श्री जे. बी. सी. नरोना, नगर सेठ स्व. श्री चंदूलाल छबिलदास शाह, दया धर्म की साक्षात् मूर्ति स्व. सेठ श्री नंदलाला गाडोदिया, लोकमान्य तिलक के कानूनी सलाहकार स्व. श्री काका बेपटिस्टा, दान शूर सेठ स्व. देवचंद संघवी, प्रकृति प्रेमी समाज सेवी स्व. श्री रघुनाथ त्रिम्बक दामले.
सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री कृष्णा राव गोविंदराव म्हात्रे, स्वतंत्रता सेनानी श्री भालचंद आनंदराव रकवी, कर्मठ समाज सेवी श्री बैंकटलाल हजारीमाल गाडोदिया, मुर्धा गांव के समाजसेवक ” माधवराव “, भाईंदर के प्रथम एस. ई. एम. बर्नार्ड नरोना, स्वाधीनता सेनानी श्री आगूस्तीन कोली.
साहित्यकार पं. मुरलीधर पाण्डेय, समाज सेवक राजेंद्र मित्तल, प्रथम नगराध्यक्ष स्व. श्री गिल्बर्ट जॉ. मेंडोसा,
समाजसेवी स्व. श्री बालाराम पाटिल जिसके नाम पर भाईंदर पूर्व स्टेशन से गोददेव गांव तक के रोड का नाम बालाराम पाटिल रोड ( बी. पी. रोड ) रखा गया हैं. जैसे मानवतावादी लोग थे.
ये लिस्ट बहुत लंबी हैं, इसीलिए यहां पर सभीका समावेश करना संभव नहीं हैं. फिर कभी इसका उल्लेख करेंगे.
क्रॉस गार्डन से मांडली तालाब तक जानेवाले रोड के इर्दगिर्द ईसाई लोग रहते थे. पुरानी देना बैंक से लेकर राव तालाब और शंकर मंदिर मार्ग को मारवाड़ी गली कहते थे. राम मंदिर से पुलिस स्टेशन तक के रोड के अजूबाजू मराठी लोगो की बस्ती थी. गावमें गणेशोत्सव, राम मंदिर प्रांगण स्थित रामलीला, मांडली तालाब स्थित ईसाई ओका गानेका कॉम्पीटेशन होता था. पुलिस स्टेशन के पूर्वी छोर पर स्थित ग्राउंड था जहाँ मुस्लिमो का कव्वाली का प्रोग्राम होता था.
साठ के दशक में धर्मशाला, प्रांगण, आवर लेडी ऑफ़ नाज़रेथ स्कूल प्रांगण, पुलिस स्टेशन ग्राउंड, तथा श्री राम मंदिर प्रांगण में कभी कभी 16 MM की हिंदी फ़िल्म दिखाई जाती थी.
आज शहर में सुभाष चंद्र बोझ ग्राउंड में क्रिकेट टूर्नामेंट खेली जाती हैं, मगर उस ज़माने में कोठार के सामने स्थित खेत में क्रिकेट की पिच बनाई जाती थी. जहाँ टूर्नामेंट खेली जाती थी. जिसमे मुंबई दादर से लेकर विरार तक की टीम भाग लेती थी.
कोठार में अनेक नारियर के पेड़ थे. तस्वीर में इंजन के दूर दूर पीछे ये दिखाई दे रहे हैं. कोठार में कुश्ती के लिए मिट्टी का ग्राउंड बनाया जाता था, जहां हर साल कुश्ती खेल की स्पर्धा होती थी.
गावमें दुकान कम थी मगर रविवारी बाजार ( संडे मार्किट ) जो पुलिस स्टेशन से महा नगर पालिका मुख्य कार्यालय तक भरती थी. जहाँ लोग सप्ताह भर की चीजे खरीद लेते थे. लोगोका मुख्य व्यवसाय नमक की खेती, और चावल की खेती था.
भाईंदर पुलिस स्टेशन से भाईंदर पश्चिम रेलवे स्टेशन तक सीमेंट कंक्रीट का पक्का रोड था. जहाँ साठ और सत्तर के दशक में घोड़ागाडी ( तांगा ) की सवारी चलती थी. जो अन्थोनी और सोमा भाई के तांगे चलते थे. अधिकांश लोग पैदल चलना ही पसंद करते थे. मालोका आवागमन के लिए बैलगाडी मुख्य श्रोत था. दूसरा पर्याय हाथ गाड़ी था. किसी के पास निजी तांगा होना प्रतिष्ठा की निशानी थी.
भाईंदर में प्रथम निजी कार सन 1832 में हैदराबाद वाले बंगले में सेठ राय बहादुर राय साहब के यहां आयी थी. यहां पर उल्लेखनीय हैं कि महाराष्ट्र में एस टी (ST) या महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) की शुरुआत 1 जून 1948 को हुई थी, जब पुणे से अहमदनगर के बीच पहली बस चली थी. शुरू में, एम.एस.आर.टी.सी. का संचालन ‘बॉम्बे स्टेट रोड’ के रूप में शुरू हुआ था.
वैसे भारत की पहली बस सेवा ता :15 जुलाई 1926 को बॉम्बे में शुरू हुई थी यह बस सेवा अफगान चर्च से क्रॉफर्ड मार्केट तक चली थी, और इसका किराया चार आने यानी 25 पैसे था. यह सेवा बॉम्बे इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग (BEST) ने शुरू की थी.
गुजरात और महाराष्ट्र अलग होने से पहले एक ही राज्य के रूप में जाने जाते थे, जिसका नाम बंबई राज्य था. यह राज्य तारीख : 1 मई 1960 को दो अलग-अलग राज्यों में विभाजित किया गया था, जिनमें से एक गुजरात और दूसरा महाराष्ट्र बना.
भाईंदर भी मुंबई की तरह आगरी, कोली, और माछी समाज का मूल वतन था. बंबई राज्य का विभाजन के बाद माछी समाज दो राज्य महाराष्ट्र- गुजरात में विभाजित हो गया. और माछी लोग गुजरात – महाराष्ट्र में विभाजित हो गए. कुछ दहानु, घोलवड़, परगाम- संजान रहे तो कुछ वापी – दमन में हो गए.
विरार से चर्चगेट के बीच पहली लोकल ट्रेन 12 अप्रैल 1867 को बॉम्बे बैकबे (आज के मरीन लाइन्स) स्टेशन तक चली थी. यह बॉम्बे, बरोडा और सेंट्रल इंडिया रेलवे (BB & CI) द्वारा शुरू की गई थी, जिससे मुंबई की उप नगरीय रेलवे सेवा शुरू हुई थी. भाईंदर स्टेशन साल 1870 के आसपास बना था. आपको जानकर हैरानी होंगी कि भाईंदर स्टेशन बनने से पहले नायगांव और भाईंदर के बिच पांजू स्टेशन था. जिसे बादमे बंद कर दिया गया.
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