सनातन धर्म की परंपरा और संस्कृति.

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सनातन धर्म और हिंदू दोनों शब्द प्राचीन भारतीय संस्कृति और धर्म से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनके अर्थ और संदर्भ में अंतर हो सकते हैं. सनातनी शब्द का अर्थ है “वह जो सनातन धर्म का पालन करता है”. सनातन धर्म का अर्थ है “शाश्वत धर्म” या “वह धर्म जो हमेशा से है और हमेशा रहेगा” सनातनी लोग वे होते हैं जो वेदों और पुराणों में वर्णित धार्मिक परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन करते हैं.

हिंदू शब्द का अर्थ है “सिंधु नदी के पार रहने वाले लोग”. यह शब्द प्राचीन फारसी भाषा से आया है, जिसमें सिंधु नदी को “हिंदू” कहा जाता था. कालांतर में, यह शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों के लिए प्रयोग किया जाने लगा, जो विभिन्न धर्मों और परंपराओं का पालन करते थे, जिनमें हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म व सिख धर्म शामिल हैं.

सनातनी और हिंदू दोनों शब्द अक्सर एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए प्रयोग किए जाते हैं. हालांकि, सनातनी शब्द विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जो वेदों और पुराणों में वर्णित धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं, जबकि हिंदू शब्द अधिक व्यापक है और इसमें विभिन्न धर्मों और परंपराओं के अनुयायी शामिल हो सकते हैं. Meta Al.

सनातन धर्म में एक दिन सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक की अवधि को कहते हैं, जिसे 24 घंटों में विभाजित किया जाता है और जिसे आठ प्रहरों में बांटा गया है. यह सूर्य के उदय होने से अगले दिन सूर्य के फिर से उदय होने तक का समय होता है.

सनातन धर्म में एक पूरे दिन को 24 घंटों में बांटा गया है. इन 24 घंटों को आठ बराबर प्रहरों में विभाजित किया गया है, जहाँ प्रत्येक प्रहर लगभग 3 घंटे का होता है.

दिन के प्रहर :

दिन में चार प्रहर होते हैं :

(1) पूर्वान्ह,

(2) मध्यान्ह,

(3) अपरान्ह, और

(4) सायंकाल.

रात के प्रहर :

रात में भी चार प्रहर होते हैं :

(1) प्रदोष,

(2) निशिथ,

(3) त्रियामा, और

(4) उषा.

ब्रह्म मुहूर्त किसे कहते हैं ? :

ब्रह्म मुहूर्त हिंदू धर्म में सूर्योदय से पहले का वह शुभ समय है, जब रात्रि समाप्त हो रही होती है और नया दिन आरम्भ होने वाला होता है. यह लगभग सूर्योदय से एक घंटा छत्तीस मिनट पहले शुरू होता है और सूर्योदय के 48 मिनट पहले समाप्त होता है, जिसकी अवधि लगभग 1 घंटा 36 मिनट होती है. इस समय को अमृतवेला भी कहा जाता है.

ब्रह्म मुहूर्त के बारे में मुख्य बातें :

समय :

यह सूर्योदय से पहले का एक घंटा छत्तीस मिनट का काल होता है.

अर्थ :

‘ब्रह्म’ का अर्थ परमात्मा या परम तत्व है और ‘मुहूर्त’ का अर्थ समय. इस प्रकार ब्रह्म मुहूर्त का अर्थ ‘परमात्मा का समय’ है.

विशेषता :

इस समय को ईश्वर का वास माना जाता है और इसमें वातावरण प्रदूषण मुक्त व ऑक्सीजन से भरपूर होता है.

महत्व :

इसे ध्यान, योग, प्रार्थना और आध्यात्मिक कार्यों के लिए सर्वोत्तम समय माना जाता है, जिससे बल, विद्या और सफलता मिलती है.

ब्रह्म मुहूर्त में क्या करना चाहिए ? :

आध्यात्मिक अभ्यास :

ध्यान, योग और प्रार्थना करने से मन शांत होता है और ईश्वर से जुड़ाव महसूस होता है.

स्वस्थ अभ्यास :

इस समय शुद्ध हवा में सांस लेने और व्यायाम करने से शरीर और मन स्वस्थ रहता है.

योजना बनाना :

रचनात्मक गतिविधियों और महत्वपूर्ण कार्यों की योजना बनाने के लिए यह समय बहुत उपयुक्त होता है.

आज के ज़माने में सनातन धर्म का पर्याय हिन्दू है परंतु सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी सनातन धर्म का हिस्सा हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं. यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं. सनातन धर्मीके लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं. बस वह सनातन धर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है.

मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है.

वेदांत दर्शन किसे कहते हैं ? :

यह उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र और भगवद गीता पर आधारित एक प्राचीन हिंदू दार्शनिक संप्रदाय है, जिसका अर्थ है ‘वेदों का अंत’ या ‘सार’. इसका मुख्य विचार है कि सभी प्राणी और ब्रह्मांड एक दिव्य शक्ति, ‘ब्रह्म’ की अभिव्यक्ति हैं, और आत्मा व परमात्मामें कोई अंतर नहीं है. यह दर्शन ‘आत्म-साक्षात्कार’ पर केंद्रित है, जिसका अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना और ब्रह्म में तल्लीन होना.

ब्रह्म की एकता :

वेदांत के अनुसार संपूर्ण ब्रह्मांड और सभी जीव ब्रह्म का ही रूप हैं. सब कुछ एक ही परम चेतना से उत्पन्न हुआ है.

आत्मा-परमात्मा की एकता :

आत्मा और परमात्मा मूल रूप से एक हैं, हालांकि अज्ञानता के कारण मनुष्य स्वयं को सीमित और शरीर से बंधा हुआ महसूस करता है.

आत्म-साक्षात्कार :

इसका लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार है, यानी अपने सच्चे स्वरूप (ब्रह्म) को पहचानना.

वेदांत के कई संप्रदाय हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध हैं :

*** अद्वैत वेदांत : यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित दर्शन है, जिसमें आत्मा और ब्रह्म को पूर्णतया एक बताया है.

विशिष्टाद्वैत : यह रामानुज से जुड़ा है.

द्वैत : यह श्री मध्वाचार्य का है.

आधुनिक महत्व में वेदांत दर्शन न केवल आध्यात्मिक विकास में सहायक है, बल्कि यह लोगों को स्वयं को और दूसरों को समझने में भी मदद करता है. यह मनुष्यों में एकता का भाव पैदा करता है, जिससे आपसी सहयोग और समझ बढ़ती है. स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जैसे आधुनिक विचारक भी वेदांत की शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.

मीमांसा दर्शन किसे कहते हैं ? :

यह वेदों की, विशेषकर कर्मकांड की व्याख्या करने वाला भारतीय दर्शन है, जिसकी स्थापना महर्षि जैमिनि ने की थी. यह दर्शन धर्म पर केंद्रित है, जिसमें अपूर्व नामक अदृष्ट शक्ति द्वारा कर्मों का फल प्राप्त होता है. मीमांसा दर्शन वेदों के महत्व और प्रामाणिकता को स्वीकार करता है, तथा वेदों के आधार पर यज्ञों और अनुष्ठानों का निष्ठापूर्वक पालन करने पर बल देता है. इसके तीन प्रमुख आचार्य जैमिनि, प्रभाकर और कुमारिल भट्ट हैं.

अर्थ और उत्पत्ति :

‘मीमांसा’ का अर्थ है विचार या व्याख्या. इसे ‘पूर्व-मीमांसा’ या ‘कर्म-मीमांसा’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह वेदों के शुरुआती भागों से संबंधित है.

स्थापना :

महर्षि जैमिनि ने लगभग 400 ईसा पूर्व ‘मीमांसा सूत्र’ की रचना की थी.

धर्म और कर्म : यह दर्शन ‘धर्म’ को वेदों में वर्णित यज्ञों और अनुष्ठानों के निष्पादन से जोड़ता है. प्रत्येक कर्म का फल एक अदृष्ट शक्ति, जिसे ‘अपूर्व’ कहते हैं, के माध्यम से बाद में प्राप्त होता है.

प्रमाण :

मीमांसा में प्रमाण (ज्ञान प्राप्ति के साधन) को महत्वपूर्ण माना गया है. आचार्य जैमिनि के अनुसार तीन प्रमाण हैं: प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द. प्रभाकर और कुमारिल भट्ट ने इसमें उपमान, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि को भी जोड़ा.

वैदिक प्रमाणवाद :

यह दर्शन वेदों को अपौरुषेय (किसी पुरुष द्वारा रचित नहीं) और अंतिम प्रमाण मानता है।

वेदांत का पूरक: मीमांसा, वेदांत दर्शन का पूरक है. वेदांत वेदों के अंतिम भाग उपनिषदों से संबंधित है, जबकि मीमांसा वेदों के शुरुआती भागों से संबंधित है.

आचार्य :

मीमांसा के तीन प्रमुख आचार्य हैं : (1) जैमिनि, (2) कुमारिल भट्ट और (3) प्रभाकर.

ईश्वर की अवधारणा :

मूल मीमांसा दर्शन में ईश्वर की भूमिका पर कोई विशेष जोर नहीं दिया गया है, और कुछ मूल मीमांसक (जैसे शबर स्वामी और जैमिनि) ईश्वरवादी नहीं थे. हालाँकि, बाद के अनुयायी जैसे कुमारिल भट्ट ईश्वरवादी हो सकते थे.

चार्वाक दर्शन एक प्राचीन भारतीय नास्तिक (ईश्वर और धार्मिक ग्रंथों को न मानने वाला) और भौतिकवादी दार्शनिक विचारधारा है, जो केवल प्रत्यक्ष अनुभव और भौतिक जगत को सत्य मानता है. यह दर्शन “यावत जीवेत सुखम जीवेत” (जब तक जियो, सुख से जियो) के सिद्धांत पर बल देता है और कहता है कि शरीर के नष्ट होने के बाद कोई पुनर्जन्म या आत्मा नहीं होती. चार्वाक दर्शन को लोकायत या बृहस्पति दर्शन भी कहते हैं, और इसके केंद्रीय ग्रंथ “बृहस्पति सूत्र” अब उपलब्ध नहीं हैं.

प्रमुख सिद्धांत

भौतिकवाद: चार्वाक मानता है कि केवल भौतिक पदार्थ (पृथ्वी, जल, तेज, वायु) ही अस्तित्व रखते हैं और आत्मा या अलौकिक सत्ता जैसी कोई चीज़ नहीं है.

प्रत्यक्ष प्रमाण :

ज्ञान का एकमात्र विश्वसनीय साधन प्रत्यक्ष (अनुभव) है. जो कुछ देखा या सुना जा सकता है, वही सत्य है; वैसे अनुमान या कल्पना सत्य नहीं हैं.

शून्य आकाश :

चार्वाक आकाश को एक तत्व नहीं मानता; यह केवल एक शून्य है.

सुख ही जीवन का लक्ष्य: यह दर्शन जीवन का परम लक्ष्य सुख को मानता है. “जब तक जियो, सुख से जियो” यह इसका मुख्य सूत्र है.

धर्म और कर्म का खंडन: चार्वाक धार्मिक अनुष्ठानों, धर्मग्रंथों, पुनर्जन्म और कर्मफल के विचारों का विरोध करता है.

अन्य नाम :

लोकायत: इसका अर्थ है “जो लोक में प्रचलित हो” या “जन सामान्य में प्रिय”.

बृहस्पति दर्शन: ऐसा माना जाता है कि इस दर्शन के संस्थापक बृहस्पति थे, इसलिए इसे बार्हस्पत्य दर्शन भी कहते हैं.

महत्व

हालांकि इसके मूल ग्रंथ अब उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी इसने बाद के नास्तिकवाद और वैज्ञानिक सोच के विकास को प्रभावित किया.

यह वेदों और धार्मिक सत्ता पर आधारित भारतीय दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण और मौलिक जवाब था.

जैन दर्शन भारत का एक प्राचीन और अवैदिक दर्शन है जो आत्मा के शुद्ध और स्वतंत्र रूप में विकसित होने पर जोर देता है. इसमें अहिंसा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, और इसका मुख्य उद्देश्य कर्मों से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त करना है. दर्शन में त्रिरत्न (सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र) के पालन द्वारा आत्मा को सभी कर्मों से मुक्त किया जाता है, जिससे जीव पुनर्जन्म के बंधन से छूट जाता है.

मुख्य सिद्धांत :

अहिंसा : जैन दर्शन का केंद्रीय सिद्धांत है, जिसका अर्थ है किसी भी जीव को कष्ट न पहुँचाना.

कर्म का सिद्धांत :

जैन दर्शन मानता है कि जीव अपने कर्मों के अनुसार ही फल भोगता है और पुनर्जन्म के चक्र में फँसा रहता है.

आत्मा की स्वतंत्रता : आत्मा स्वयं अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार है और किसी बाहरी ईश्वर की कृपादृष्टि पर निर्भर नहीं है

मोक्ष :

कर्मों से पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना ही मोक्ष कहलाता है, जिसके बाद जीव स्वयं भगवान बन जाता है.

त्रिरत्न :

मोक्ष प्राप्त करने के लिए सम्यक दर्शन (सही विश्वास), सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान), और सम्यक चरित्र (सही आचरण) का पालन आवश्यक है.

इतिहास और संस्थापक :

यह एक प्राचीन भारतीय दर्शन है और वेदों को प्रामाणिक नहीं मानता, इसलिए इसे अवैदिक या नास्तिक दर्शन भी कहा जाता है.

इसके संस्थापक प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव माने जाते हैं.

अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय में इस

दर्शन का व्यापक रूप से प्रचार हुआ.

पदार्थों का विश्लेषण :

जैन दर्शन ‘द्रव्य, गुण, पर्याय’ के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें हर वस्तु पदार्थ, उसका गुण और उसके परिवर्तन के मोड को दर्शाता है

इसमें आत्मा की अनंत शक्तियां मानी गई हैं, जिन्हें कर्म ढक लेते हैं और जीव बंधन में बँध जाता है.

पैदा करता है, जिससे आपसी सहयोग और समझ बढ़ती है. स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस जैसे आधुनिक विचारक भी वेदांत की शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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