500 साल पुराना कालबादेवी मंदिर.

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मुंबई का कालबादेवी मंदिर देवी काली का एक अवतार हैं. जो देवी माँ कालबादेवी को समर्पित है और यह शहर के सबसे पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है, जिसके नाम पर कालबादेवी क्षेत्र का नाम पड़ा है. यह मंदिर कई बार स्थानांतरित हुआ है. मूल रूप से माहिम में स्थित यह मंदिर को सरकार द्वारा सड़क चौड़ीकरण के कारण इसे सबसे पहले आज़ाद मैदान में लाया गया और फिर उसे कालबादेवी क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया. मंदिर का प्रबंधन आज जोशी परिवार की सातवीं पीढ़ी के हाथों में है और यह व्यापारियों का पवित्र स्थान है.

पहला स्थानांतरण 18वीं सदी में, श्री रघुनाथ कृष्णा जोशी ने इसे आजाद मैदान (जिसे तब कैम्प मैदान कहा जाता था) में स्थापित किया. दूसरा और अंतिम स्थानांतरण सन 1803 की एक भीषण आग के बाद और अंग्रेजी सरकार द्वारा सड़क चौड़ी करने के निर्णय के कारण, मंदिर को वर्तमान कालबादेवी क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया, और मूल संरचना को ध्वस्त कर दिया गया.

वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन जोशी परिवार की सातवीं पीढ़ी के श्री दिनेश जोशी के हाथों में है.यह मंदिर को शहर का रक्षक माना जाता है और व्यापारियों के बीच यह एक कुलदेवी के रूप में पूजित होता है, जिनके आशीर्वाद से व्यापार में वृद्धि होती है.

यह मंदिर भारतीय आजादी की लड़ाई का भी गवाह रहा है, जहाँ हुतात्मा बाबूगेनू और चाफेकर बंधु जैसे नेता प्रतिदिन दर्शन करते थे. स्थानीय व्यापारियों का कहना हैं किकालबादेवी की दया से व्यापार में तरक्की होती हैं.

18 वीं सदी में इस क्षेत्र में मूलत: व्यापारी वर्ग रहा करते थे, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, पारसी सभी का समावेश था. यह मंदिर 500 साल पुराना है. और व्यापारियों की आराध्य देवी के रुपमें पूजीत हैं.

दक्षिण मुंबई के सबसे ज्यादा हिंदी भाषी आबादी वाले इस कारोबारी क्षेत्र के कालबादेवी मंदिर में हर व्यापारी मत्था टेकता है, जिससे उसके कारोबार में लगातार तरक्की हो. देश के सबसे समृद्ध व्यापार परिसर कालबादेवी में कपड़ा, सोना चांदी से लेकर हर उन वस्तुओं का व्यवसाय होता है जो मानव जीवन के भौतिक जीवन को सुख समृद्धि प्रदान करता हैं. इस लिए भक्त मानते हैं कि यहां आने वाले हर भक्त पर माता की असीम कृपा बरसती है.

कालबादेवी मंदिर पुराना मंदिर है. रघुनाथ कृष्णा जोशी ने सन 1785 में इस मंदिर का निर्माण आजाद मैदान में किया था, जिसे तब कैम्प मैदान कहा जाता था. ऐसा माना जाता है कि सन 1803 में एक भीषण आग हादसे के बाद अंग्रेजों ने लोगों को तब बम्बई की सीमा से बाहर बसने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया था.

उस समय मुंबई में जो अनियोजित बस्तियां थी उनमें कालबादेवी और उसके आस-पास के इलाके भी थे. उसी समय के दरम्यान कालबादेवी मंदिर को कालबादेवी परिसर में स्थान्तरित किया गया. कालबादेवी मंदिर के नाम पर ही क्षेत्र का नाम कालबादेवी पड़ गया. 18 वीं सदी में इस क्षेत्र में मूलत: व्यापारी वर्ग रहा करते थे, जिसमें हिंदू मुस्लिम और पारसी-सभी थे. पुराने समय के गोथिक व भारतीय शैली की इमारतों के बीच में कालबादेवी मंदिर बेहद छोटा सा मंदिर है.

जिसमें महाकाली, महालक्ष्मी व राज राजेश्वरी की मूर्तियां हैं, बीच की मूर्ति को ही कालबादेवी कहा जाता है. सभी मूर्तियां स्वयंभू है. आजादी की लड़ाई का भी गवाह है कालबादेवी मंदिर कालबादेवी मंदिर आजादी की लड़ाई का भी साक्षात गवाह है.

हुतात्मा बाबूगेनू, श्री चाफेकर बंधु व उनके अनेक सहयोगी प्रतिदिन कालबादेवी का दर्शन करते थे.इस मंदिर को हिन्दू टेम्पल आफ बॉम्बे की श्रेणी में भी रखा गया है. कालबादेवी मंदिर का देखभाल रघुनाथ कृष्णा जोशी की सातवीं पीढ़ी के दिनेश जोशी करते हैं.

कालबादेवी मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से मार्गशीर्ष आमवस्या के दिन मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जाता है. श्री दिनेश जोशी के अनुसार कालबादेवी व्यापारियों की कुलदेवी हैं इनकी कृपा से व्यापार में वृद्धि होती है. कभी आप कालबादेवी जाओ तो अवश्य दर्शन कीजियेगा. ( समाप्त )

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