महार जाती के 500 सैनिकों ने पेशवा साम्राज्य के 2800 सैनिको कों मात दी.

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सिद्धनाथ महार, सिद्धनक महार के नाम से भी जाने जाते हैं, वे 18वीं – 19वीं शताब्दी के एक महार रेजिमेंट के भारतीय सैनिक थे, जिन्होंने 1 जनवरी, 1818 के दिन हुए भीमा कोरेगांव की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह लड़ाई ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना के बीच हुई थी, और महार सैनिकों की यह लड़ाई आत्मसम्मान और तत्कालीन पेशवा साम्राज्य द्वारा उन्हें दिए गए अपमान के विरुद्ध एक प्रतीक बन गई थी.

सिद्धनाथ महार, महार जाति के होने के कारण, वे शूद्र माने जाते थे और उन्हें समाज में कई अधिकारों से वंचित रखा गया था. उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल होने का एक अवसर मिला, जो उनके लिए बेहतर जीवन का अवसर था क्योंकि पेशवा साम्राज्य ने उन्हें साम्राज्य में कोई स्थान देने से इंकार कर दिया था.

1 जनवरी 1818 को पुणे के पास भीमा कोरेगांव में यह युद्ध लड़ा गया.

लगभग 834 ब्रिटिश सैनिकों में से, लगभग 500 महार सैनिक थे. इन्होंने 28,000 सैनिकों की पेशवा सेना का बहादुरी से मुकाबला किया और उन्हें हरा दिया था.

किसी भी पक्ष को युद्ध में निर्णायक जीत हासिल नहीं हुई. युद्ध के तुरंत बाद, माउंटस्टुअर्ट एल्फिंस्टन ने इसे पेशवा के लिए एक “छोटी जीत” के रूप में वर्णित किया. फिर भी, ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने अपने सैनिकों की बहादुरी की प्रशंसा की, जिन्हें संख्या में कम होने के बावजूद पराजित नहीं किया जा सका.

उन्होंने भूख, प्यास और थकान के बावजूद अविश्वसनीय साहस और धैर्य का परिचय दिया था. यह लड़ाई दलित गौरव का प्रतीक बन गई है, जो जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ प्रतिरोध का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक उदाहरण है.

विजय स्तंभ और शौर्य दिवस :

युद्ध के बाद, अंग्रेजों ने कोरेगांव में विजय स्तंभ का निर्माण कराया, जो महार सैनिकों के बलिदान और वीरता को समर्पित है. हर साल 1 जनवरी को इस युद्ध की याद में शौर्य दिवस मनाया जाता है.उन्हें भीमा कोरेगांव की लड़ाई के लिए याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से लड़ाई लड़ी थी.

यह लड़ाई तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध का हिस्सा थी. महार सैनिकों की यह जीत तत्कालीन ब्राह्मणवादी व्यवस्था द्वारा किए गए अपमान के खिलाफ आत्मसम्मान की जीत मानी जाती है.

पेशवाओं द्वारा महारों को सार्वजनिक रूप से घूमने के लिए मुंह में मटका और कमर में झाड़ू बांधने के लिए मजबूर किया गया था, और उनकी इस लड़ाई में जीत को ऐसे अपमान के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखते है.

सिद्धनाथ महार इस लड़ाई के नायकों में से एक माने जाते हैं. इस लड़ाई में सिद्धनाथ महार के नेतृत्व में

महार समुदाय के सैनिक लड़े थे. महारों ने अपने शौर्य और वीरता से महत्वपूर्ण जीत दिलाई, जिसे अब दलित गौरव और उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. इस जीत की याद में ‘विजय स्तंभ’ बनाया गया है और हर साल दलित समुदाय के लोग भारत भर से श्रद्धांजलि देने के लिए यहां इकट्ठा होते हैं.

महार भारतीय समाज का एक प्रमुख समूह है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र और आसपास के राज्यों में रहता है और यह एक अनुसूचित जाति है. महार जाति के लोग पारंपरिक रूप से गांवों के बाहर रहते थे, और सेवा के विभिन्न कर्तव्य करते थे, जैसे कि गुप्तचर और सूचना वाहक के रूप में काम करना.

महार मुख्य रूप से महाराष्ट्र में पाए जाते हैं और मराठी भाषा बोलते हैं. महार जाति को भारत के कई राज्यों में अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त है.

परंपरागत रूप से, महार समुदाय योद्धाओं, सैनिकों और अंगरक्षकों के रूप में जाना जाता था, और शिवाजी महाराज की सेना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.

यह महार जाति डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर से जुड़ी है, जो स्वयं इसी समुदाय से थे. 20वीं सदी के मध्य में, महार समुदाय के अधिकांश लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया था. महारों का काम गांव और शहर की सुरक्षा करना, संदेशवाहक के रूप में काम करना, और सूचना की जानकारी देना था, जिससे उन्हें गांव के बाहर रहने की प्रथा थी.

महार समुदाय महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, और अन्य राज्यों में भी पाया जाता है. संक्षेप में, महार एक प्रमुख भारतीय जाति समूह है जिसकी एक समृद्ध ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक पृष्ठभूमि है, और यह डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर और बौद्ध धर्म से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है.

चमार का कोई “पुराना” नाम नहीं है, बल्कि इसे कई नामों से जाना जाता है, जिसमें चर्मकार, चंवर वंश, चंबर, और छमवर शामिल हैं, और विभिन्न उपनाम जैसे जाटव, रविदास, और मोची भी हैं. ‘चमार’ शब्द संस्कृत के ‘चर्मकार’ से आया है, जिसका अर्थ है चमड़ा बनाने वाला. कुछ स्रोतों के अनुसार, ‘चमार’ शब्द सिकंदर लोदी द्वाराचंबर वंश को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

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