“ॐ” की उत्पत्ति कब हुई थी ?
” ॐ ” की उत्पत्ति अनादि है और यह सृष्टि के आरम्भ से ही ब्रह्मांड में मौजूद है. कुछ कथाओं के अनुसार, यह भगवान शिव के मुख से प्रकट हुआ हैं, जबकि अन्य में इसे परम सत्य (ब्रह्म) से उत्पन्न एक कंपन माना जाता है जिसने सृष्टि की गति को जन्म दिया.
एक मान्यता के अनुसार शिव पुराण में वर्णित है कि सबसे पहले भगवान श्री शिव के मुख से ओंकार प्रकट हुआ, जो उनका ही स्वरूप है और संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है. कुछ मान्यताओं के अनुसार जब परम सत्य (ब्रह्म) ने ‘मैं केवल एक हूँ : मैं अनेक हो जाऊँ’ ऐसा सोचा, तो एक कंपन उत्पन्न हुआ जो ध्वनि ‘ॐ’ बन गया और इसी से सृष्टि की गति हुई.
कुछ व्याख्यानों के अनुसार ॐ एक अनाहत बिना टकराए उत्पन्न होने वाली ध्वनि है जो हमेशा से मौजूद है और जिसे कानों को बंद करके ही सुना जा सकता है. ॐ का उल्लेख ऋग्वेद और यजुर्वेद से लेकर कई उपनिषदों में हमें मिलता है. इसे मंत्रों की शुरुआत में एक मानक उच्चारण के रूप में उपयोग किया जाता है.
ॐ का अक्षर ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’ से मिलकर बना है, जो क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र का वाचक है. यह एक ध्वनि मात्र नहीं है, बल्कि सृष्टि का बीज है, व सभी वेदों, मंत्रों और ज्ञान का स्रोत है.
इसे ‘प्रणव’ भी कहा जाता है और यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है. मंडूक उपनिषद के अनुसार, यह भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों और उनसे परे हर जगह मौजूद है.
जो व्यक्ति ॐ का उच्चारण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह व्यक्ति परमगति को प्राप्त होता है.
ॐ इस ब्रह्मांड में हमेशा से था, है और रहेगा. इसका कभी क्षरण नहीं हो सकता. यह एक नियमित ध्वनि है. इस ब्रह्मांड में जब किसी तरह का शोर नहीं होगा, तब सिर्फ एक ध्वनि सुनाई देगी वो है ॐ.
“ॐ” हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों में एक पवित्र ध्वनि और प्रतीक है, जो परम सत्य या ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है. यह तीन अक्षरों ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’ से मिलकर बना है, जो क्रमशः सृष्टि (ब्रह्मा), पालन (विष्णु), और संहार (महेश) को दर्शाते हैं. यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है और इसका नियमित उच्चारण मानसिक शांति और शारीरिक लाभ के लिए किया जाता है.
ॐ का महत्व और प्रतीकवाद
सृजन, पालन और संहार: ‘अ’ सृष्टि, ‘उ’ पालन और ‘म’ संहार का प्रतीक है. इस प्रकार, ‘ॐ’ में सृजन, पालन और संहार की पूरी प्रक्रिया समाहित है. भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त स्वरूप है, साथ ही यह प्रकृति के तीन गुणों : सत्व (अ), रजस (उ), और तमस (म) : का भी प्रतिनिधित्व करता है.
ॐ को ब्रह्मांड की मूल और सबसे पवित्र ध्वनि माना जाता है, जो सृष्टि की शुरुआत में उत्पन्न हुई थी. ” ॐ ” का उच्चारण करने से शरीर में कंपन होता है और मन शांत होता है, जिससे मानसिक शांति और शारीरिक लाभ मिलता है.
ॐ का उपयोग अक्सर किसी भी मंत्र की शुरुआत में किया जाता है. यह मंत्रों को पूरा करने और पूजा को सफल बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है. इसका उपयोग ध्यान और योग में किया जाता है ताकि मन को एकाग्र किया जा सके व शांति प्राप्त कर सके.
ओम और राम में मुख्य अंतर यह है कि ओम (ॐ) परमात्मा का एक अनादि और मूल नाम है, जबकि राम निराकार ब्रह्म का साकार रूप हैं और “राम” नाम को वेदप्राण माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह अन्य सभी मंत्रों और ध्वनियों का आधार है. कुछ मतों के अनुसार, राम नाम से ही ओम की उत्पत्ति हुई है, जबकि अन्य मानते हैं कि दोनों एक ही हैं और एक को दूसरे के बराबर माना जाता है.
सनातन धर्म एक शाश्वत आध्यात्मिक मार्ग है जिसमें कई मत और प्रथाएं भी शामिल हैं, जिनमें हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म जैसे अन्य धर्म भी आते हैं. इन सभी में मूल सिद्धांत समान हैं, जैसे सत्य, अहिंसा, दया और मोक्ष की प्राप्ति.
जैन धर्म में ॐ :
जैन धर्म में अरिंहत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनियों को पंच परमेष्ठी माना गया है. इनके आद्य अक्षरों को मिलाया जाए, तो ॐ की ध्वनि निकलती है.
सिख धर्म में ॐ :
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक ने कहा था कि एक ओंकार सतनाम अर्थात् ॐ कार ही अटल सत्य है. हमारे द्वारा बोले जाने वाले सभी शब्दों की एक सीमा होती है. मगर ॐ की कोई सीमा नहीं होती. यह असीमित होता है.
बौद्ध धर्म में ॐ :
बौद्ध धर्म में ‘ओम मणि पद्मे हुम्’ मंत्र का बड़ा महत्व है. कुछ विद्वानों के मुताबिक इस मंत्र का अर्थ है ॐ वो मणि है जो कमल पर विराजमान है.
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