उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की एकमात्र हिंदी फ़िल्म : गूंज उठी शहनाई -1959

ustad bismillah khan

गूंज उठी शहनाई जिसका अर्थ है : शादी की घंटियाँ बजने लगी हैं. यह फ़िल्म 1959 में बनी विजय भट्ट द्वारा निर्देशित हिंदी फिल्म है, जिसमें राजेंद्र कुमार, अमिता, अनीता गुहा और आई. एस. जौहर मुख्य भूमिका में हैं.

यह फ़िल्म उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की एकमात्र हिंदी फ़िल्म थी और निर्देशक विजय भट्ट उनसे इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने फ़िल्म का नाम ही ‘गूंज उठी शहनाई’ रख दिया था. एक और कहानी यह है कि फ़िल्म से आशा पारेख को हटाकर अमिता को लेने का फैसला लिया गया क्योंकि विजय भट्ट को लगा कि आशा में अभी स्टार वैल्यू नहीं है.

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को एक समारोह में निर्देशक श्री विजय भट्ट ने शहनाई बजाते सुना और वे प्रभावित हुए. गूंज उठी शहनाई फ़िल्म उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की एकमात्र हिंदी फ़िल्म थी. यह भी कहा जाता है कि संगीतकार के अनावश्यक हस्तक्षेप से परेशान होकर उन्होंने फिर कभी हिंदी फिल्मों के लिए शहनाई नहीं बजाई.

हालांकि उन्होंने कुछ क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के लिए जरूर बजाया था, जैसे कि एक कन्नड़ फिल्म “Sanadi Appanna’.

इस फ़िल्म में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई और सितार वादक अब्दुल हलीम जाफर खान के बीच में जुगलबंदी भी थी. यह फ़िल्म अभिनेता राजेंद्र कुमार की पहली बड़ी हिट फ़िल्म थी और उस वर्ष की पांचवीं सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्म थी.

उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान ( जन्म : क़मरुद्दीन ख़ान , 21 मार्च 1916 – 21 अगस्त 2006 ), जिन्हें अक्सर उस्ताद की उपाधि से जाना जाता है, एक भारतीय संगीतकार थे जिन्हें शहनाई , एक रीडेड वुडविंड वाद्य यंत्र , को लोक प्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है.

जीवन में पिया तेरा साथ रहे, जैसे कई हिट गाने, रफी , और लता का “तेरे सुर और मेरे गीत” और “दिल का खिलोना हाये टूट गया”. गाना मन को मोह लेता हैं. दिल को छू लेने वाला संगीत 1959 की इस प्रेम कहानी को एक अलग ही खूबसूरती देता है. इसके लिए संगीत के उस्ताद वसंत देसाई, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, शास्त्रीय गायक आमिर खान और बेशक, मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर और गीता दत्त को सैलूट. ***53

कहानी संक्षिप्त में :

बचपन के प्रेमी गोपी (अमीता) और किशन (राजेंद्र कुमार) बड़े होने पर शादी करने की उम्मीद करते हैं. गोपी किशन की शहनाई की जादुई धुनों पर नाचती है और दोनों लगभग अविभाज्य हैं. दोनों बड़े होकर आकर्षक प्रेमी बनते हैं. गोपी की माँ, जमुना (लीला मिश्रा), चाहती हैं कि गोपी की शादी लखनऊ के शेखर नाम के एक युवक से हो, जो ऑल इंडिया रेडियो में काम करता है. शेखर उनसे मिलने जाता है, गोपी से मिलता है, और इस शादी को मंजूरी देता है, और जमुना से शादी के लिए एक दिन तय करने के लिए कहता है.

जब यह खबर गोपी और किशन तक पहुँचती है, तो दोनों का दिल टूट जाता है. किशन गोपी से शादी करना चाहता है, वह जानता है वह बेरोजगार और गरीब है, और इसलिए उसे एक अच्छा वर नहीं माना जाता है. इसके अतिरिक्त, उनके गुरु और अभिभावक, रघुनाथ, चाहते हैं कि वह उनकी बेटी रामकली (अनीता गुहा) से शादी करें.

मामला तब और बिगड़ जाता है जब गाँव वाले किशन को जाने के लिए कहते हैं क्योंकि उसने गोपी से मिलने की गुस्ताखी की थी, जिसका वादा अब शेखर से हो चुका है. किशन ( राजेंद्र कुमार ) शहर छोड़कर लखनऊ चला जाता है. किस्मत का साथ तब मिलता है जब किशन की मुलाक़ात शेखर से होती है, जो उसे रेडियो स्टेशन पर नौकरी दिला देता है.

जल्द ही किशन का संगीत पूरे देश में मशहूर हो जाता है और वह अमीर और मशहूर हो जाता है. वह गोपी से शादी करने के लिए घर लौटता है, लेकिन उसे पता चलता है कि शेखर उससे शादी करने वाला है. फिल्म के बाकी हिस्से में ऐसी कई घटनाएँ हैं जो प्रेमियों की दयनीय स्थिति और कुछ सामाजिक वर्जनाओं के चलते उन्हें अलग होने पर मजबूर होने के तरीके को देखकर आपका दिल दहल जाता है.

दुखद लेकिन बेहद दिलचस्प…

किशन और गोपी की प्रेम कहानी मुश्किलों से भरी है. इनमें से एक मुख्य है कन्हैया, गाँव का शरारती डाकिया, जिसकी नज़र गोपी पर है. वह अफ़वाहें और ग़लतफ़हमियाँ फैलाने से पहले ज़रा भी नहीं सोचता. आईएस जौहर, चुटीले कन्हैया के रूप में वाकई परेशान करने वाले हैं.

हालांकि यह प्रेम कहानी परंपरा से बंधी है, किशन एक आदर्श प्रेमी है, जो गोपी का दीवाना है और पूरे दिल से उससे रिझाता है. अपनी शहनाई से पल भर में धुन बनाने की प्रतिभा से लैस, वह तमाम विरोधों और प्रतिकूलताओं के बावजूद एक वफादार प्रेमी है. राजेंद्र कुमार अच्छे लगे हैं और किशन के रूप में काफी पसंद किए जाते हैं.

यह मदद करता है कि उन्हें कुछ बेहतरीन गाने गाने को मिले. मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर ने मैंने पीना सीख लिया , तेरे सुर और मेरे गीत , हौले हौले घूंघट पट खोले, मुझको अगर भूल जाओगे तुम , कह दो कोई ना करे यहां प्यार और तेरी शहनाई बोले में जादू बिखेरा है.

जब किशन शहनाई बजाता है, तो ऐसा लगता है जैसे ब्रह्मांड सुरों से भर गया हो उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ का संगीत सचमुच अलौकिक है, रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफ़ी हैं, जब भी किशन शहनाई को अपने होठों से लगाते हैं, तो लगता है मानो आकाश मधुर और कोमल धुन से गूंज उठेगा.

क्रेडिट सोशल मिडिया – ब्लॉगर. कॉम

साल 1960 में फिल्मफेयर पुरस्कार : फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार : अनीता गुहा : नामांकित किया गया था. ये फ़िल्म यू ट्यूब में आसानीसे उपलब्ध हैं.

( समाप्त )

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